मर्ज़ियाँ मोड़ दी तुमने तो राह बदल गई
अर्ज़ियाँ मानते तो हम मुसाफिर नहीं होते
बस इक सच बोल के मैंने वो सिलसिला शुरू किया था
तुम सौ झूठ न बोलते, तो हम तनहा नहीं होते
जो वक़्त तुमने तमाम नफरतों में खर्च दिए, हमारा इश्क़ ज़िंदाबाद होता
गर तुम थोड़े बहुत भी मेरे जैसे होते
मेरे ख्वाब टूटे हैं या तोड़े गए है ख़ुदा जाने, तुम बस तुम न होकर अगर हमारे होते
न ख्वाब टूटते हमारे न तुम तोड़ने देते
उस तूफ़ान में जो घर की खिड़किया दरवाज़े तुमने खोले नहीं होते
महफ़ूज़ तुम भी होते, महफूज़ हम भी रह पाते
मोहब्बत कर तो बैठे तुम, मोहब्बत समझ नहीं पाये
मोहब्बत समझ पाते जो, तुम पत्थर दिल नहीं होते
समंदर ने बता कब किसी की प्यास बुझाई है, जो दरिया संग तुम चलते
प्यासे तुम नहीं होते, प्यासे हम नही होते
मोहब्बत के कई किस्से कई बातें, तुमने भी सुनी होंगी
उन्हें दिल से सुना होता तो किस्सा खत्म ना करते
अना ने तेरी आँखों पर एक मोटा पर्दा डाल रखा है, वो पर्दा खोल पाते तो
परेशां तुम नहीं होते, परेशां हम नहीं होते
वो मौसम गर्मियों का था, तुम बादल को कोस रहे थे
वक़्त पर पानी जो डाल देते, वो गमले सूखे नहीं होते
तुमने खुद ही खुरच कर मिटा दी है अपने हाथों से मेरे हिस्से की लकीरें
वरना क़यामत तक मैं तेरा होता, तुम सिर्फ मेरे होते
मर्ज़ियाँ मोड़ दी तुमने तो राह बदल गई
अर्ज़ियाँ मानते तो हम मुसाफिर नहीं होते ॥
“ऋतेश “