“आजादी सबको है पर”

आजादी सबको है पर हर आज़ादी के कुछ कायदे और कानून है वो भी इसलिए क्यूँकि कल अगर आजादी के साथ जुड़ी हुई सारी सीमायें हटा दी जाये तो इंसान ईश्वर को चुनौती देकर खुद को ही भगवान मान बैठेगा और फिर एक अनसुनी और अनहोनी जंग छिड़ेगी खुद को इकलौता ईश्वर बताने की आज…

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“तू परेशान है तो आसानी किसको है”

तू परेशान है तो आसानी किसको है सब कुछ यूँ ही मिल जाये तो परेशानी किसको है वो बहक गया देखा – देखी कल मै भी जो बहक जाऊं तो हैरानी किसको है लुट रहा है मुल्क चलो हम भी कुछ लूट लें मुफ्तखोरी से भला इस मुल्क में बदहज़मी किसको है तू परेशान है…

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“नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं”

नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं तुमसे बेहतर ही था तुमसे बेहतर ही हूँ वक़्त की टिकटिक पर कब टिका हूँ मैं आवारा ही था आवारा ही हूँ आवारा ही था आवारा ही हूँ! “ऋतेश“

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“मैं इंसान ही जन्मा था मैं इंसान ही मरूंगा”

हर बात में एक कहानी छुपी है जिसके पीछे किरदार छिपे है अलग-अलग नक़ाब लगाए हुए, छुपाते है अपनी असल शक़्ल को इस क़दर जो कभी सामना हो खुद का आईने से तो खुद की आँख भी धोखा खा जाये और नक़ाब ओढ़े हुए किरदार को खुद भी ना पहचान पाए यही फलसफा है दुनिया…

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किसकी तलाश में हो

किसकी तलाश में हो क्या ढूंढ रहे हो तुम क्या क्या याद है तुम्हे अब तलक क्या खुद को ही भूल गए हो तुम क्या तुम में वो बात है क्या तुम्हारी औकात है कौन से सवालों में उलझे हुए हो किसके जवाब से परेशां हो तुम आग है अभी भी या सिर्फ राख बची…

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“यादों को यादों की गलियों में छोड़”

यादों को यादों की गलियों में छोड़ ख्वाबों को चुनने हम चल दिए हैं ठंडी सी रात में आँखों को मीचे दिन की तलाश में हम सिरफिरे हैं तलब है उजाले को मुट्ठी में करना अंधेरो को पीछे छोड़कर हम चले है लकीरे हथेली की यूँ ना बदलेंगी बदलने को तक़दीर सजग हैं, अटल हैं…

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“कुछ अच्छा करना है तो सोच बदलो”

कुछ अच्छा करना है तो सोच बदलो ज़िद करो, ज़िद्दी बनो, उठो, रेंगो मत दौड़ो, मंज़िल बहुत दूर नहीं है वो बस तुम्हारी उम्मीद और मेहनत के इक महीन धागे से बंधी है तुम्हारा हौसला उसे और मज़बूत करेगा थको मत, दुनिया बदलने का माद्दा है तुममे खुद को पहचानो और बदल दो खाका इस…

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"फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से"

फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े उलझने कम नहीं हैं इस ज़माने में, इन्हे और न बढ़ाएं सुलझाएं इन्हे खुद से, औरों पे न मढ़े माना उलझी हैं, हाथों और माथे की लकीरें चलें वक़्त के साथ, वक़्त से न…

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"इक और साल गुज़र रहा है"

इक और साल गुज़र रहा है, कुछ नमकीन कुछ मीठी यादें देकर इक नया साल सामने खड़ा है, वक़्त के अनजान टुकड़ों को पोटली में बांधकर नए लिबास में कितना मासूम दिख रहा है अपनी पलकें खोलने को बेकरार खड़ा है उमीदों का बहुत बोझ होगा इस आने वाले साल पर कई अनसुलझे सवालों के…

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