फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें
ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े
उलझने कम नहीं हैं इस ज़माने में, इन्हे और न बढ़ाएं
सुलझाएं इन्हे खुद से, औरों पे न मढ़े
माना उलझी हैं, हाथों और माथे की लकीरें
चलें वक़्त के साथ, वक़्त से न डरें
ये दुनियां गम के साथ खुशियां भी लपेटे हुए है
खोजें उन्हें, मुस्कुराते चलें
फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें
ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े
ये जो नफ़रत की हवा है गुज़र जाएगी
प्यार की बोलियाँ बस गुनगुनाते चले
फर्क तुझमे और मुझमे कहाँ है बता
अलग है कहाँ तेरा मेरा पता
गर हम इंसानियत की राह बढ़ते चलें
उठो आज सबको ज़रूरत तुम्हारी
सारे कंधे से कन्धा मिलते चलें
फुरसत नहीं इबादत की तो खुदा से तो शिकायत ना करें
ना जीत सकें औरो से, तो अपनों से ना लड़े
“ऋतेश “