“क्या तुमने वो लड़की देखी है?”

क्या तुमने वो लड़की देखी है?
अभी कुछ देर पहले जिसके ठहाकों से ये घर गूँज रहा था
उसके नंगे ज़मीन से रगड़ते हुए पाओं की सरसराहट
अभी तो गुजरी थी बगल से
क्या तुमने वो लड़की देखी है?

अपनी उलझी हुई लटों में उसने पूरा घर सुलझा रखा था
घर में रौशनी रहे सूरज को उसने आँगन में बिठा रखा था
उसकी एक ज़िंदगी से सब खुद को ज़िंदा समझते थे
सबकी परेशानियों को उसने अपने गालों में पड़े खड्डों में छिपा रखा था
वक़्त और जरुरत के हिसाब से खुद को ढाल लेना हम सब ने उसी से सीखा है
कैसे औरो के लिए जीते हैं ये हमने उसी में देखा है
क्या तुमने वो लड़की देखी है?

उसकी लड़खड़ाती हुई आवाज़ अब भी गूंजती है कानो में सीना चीरकर रख देती है
नसों में बहता खून पानी बनकर उतर जाता है पथराई आँखों में
सारे अंग सुन्न हो जाते है उसकी टीस जाते नहीं जाती
वो कहाँ चली गई है? वो क्यूँ चली गई है?
क्या तुमने वो लड़की देखी है?

“ऋतेश“

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