“क्या तुमने वो लड़की देखी है?”

क्या तुमने वो लड़की देखी है? अभी कुछ देर पहले जिसके ठहाकों से ये घर गूँज रहा था उसके नंगे ज़मीन से रगड़ते हुए पाओं की सरसराहट अभी तो गुजरी थी बगल से क्या तुमने वो लड़की देखी है? अपनी उलझी हुई लटों में उसने पूरा घर सुलझा रखा था घर में रौशनी रहे सूरज…

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“नज़्म जो लिखे थे तुम पर”

नज़्म जो लिखे थे तुम पर कई साल पहले सर्दियों में जाने कहाँ छिटक कर गिर गए हैं वो मेरी डायरी से मैंने बहुत ढूँढा पर कहीं ना मिला अब तक कुछ भी हाँ मगर धुंधला सा याद है थोड़ा बहुत जोड़ कर देखूंगा हर्फ़ दर हर्फ़ शायद कहीं वो अधूरी नज़्म मुकम्मल हो जाये…

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“मैं इंसान ही जन्मा था मैं इंसान ही मरूंगा”

हर बात में एक कहानी छुपी है जिसके पीछे किरदार छिपे है अलग-अलग नक़ाब लगाए हुए, छुपाते है अपनी असल शक़्ल को इस क़दर जो कभी सामना हो खुद का आईने से तो खुद की आँख भी धोखा खा जाये और नक़ाब ओढ़े हुए किरदार को खुद भी ना पहचान पाए यही फलसफा है दुनिया…

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