वो मंज़र वो समंदर, मैं कैसे भूल सकता हूँ
वो उजली रात, वो मीठी बात, मैं कैसे भूल सकता हूँ
तेरा खिड़की के किनारे से मुझको तकना
वो आँखों के इशारे से शिकायत करना
वो हर याद, वो मुलाकात, मैं कैसे भूल सकता हूँ
वो मंज़र वो समंदर, मैं कैसे भूल सकता हूँ
है तू नाराज़ किसी बात पे, पता मुझको
क्या ख़ता हो गयी मुझसे, इतना तो बता मुझको
वो तेरा साथ, तेरी हर सांस, मै कैसे भूल सकता हूँ
वो मंज़र वो समंदर, मैं कैसे भूल सकता हूँ ||
“ऋतेश “
kishan
July 26, 2014 at 4:16 pmWaaaaahhh
Un Raat ko, un baato ko..
Mai kaise book sakta hu…