"डबडबाई दो झीलों से"

डबडबाई दो झीलों से
बह चलीं खारे पानी की नहरें
बात कुछ नहीं, बस उनकी याद आ गयी
और छू गयीं, किनारों को लहरें “

“ऋतेश “

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