"वो लड़का खामोश खड़ा"

वो लड़का खामोश खड़ा खिड़की से उस बिलकुल नए सूरज की ओर देख रहा था
जो सुबह-सुबह अपनी पीली धूप से उसकी आँखे चकाचौंध कर रहा था

बहुत तेज़ी से उसका सब कुछ उससे छूट रहा था
जैसे सर्द रात की ओस घांस में अटकी रही हो, इठला रही हो अपने जीवन पे

पर सहसा सूरज की धमक और उसकी गर्मी ने उस नन्ही सी बूँद को भाप बनाकर उड़ा दिया उस विशाल वातावरण में
जिसमे उस अकेली बूँद का कोई वज़ूद नहीं, शायद यही परिवर्तन है

ठंडी ओस का सूरज की गर्मी में भाप बनकर खो जाना यही जीवन का रूपांतरण है
आज की नयी सोच इसे आगे बढ़ जाना कहती है

अपनी आवाज़ से दूसरों को खामोश कर देने वाला वो लड़का
खिड़की पे खड़े सूरज की आँखों से आँखे मिला रहा था

और उसके ज़ेहन में सवालों की इक पोटली थी, जिसे वो खोल नहीं पा रहा था
शायद उसे डर था के ये नया सूरज भी उन सवालों के जबाब देने से कहीं कतरा न जाये

और पिछले कई सूरज की तरह अपने चेहरे पर बादलों का नक़ाब ओढ़ ले
उसे वो पीली गरम धूप अच्छी लग रही थी, क्यूंकि वो चमक रहा था

सूरज की सम्पूर्ण ऊष्मा को ऊर्जा के रूप में समेट रहा था
ताकि वो खड़ा हो सके और इस नयी सुबह से जीवन को इक नयी दिशा दे सके

मन ही मन वो खुद से अनगिनत वादे कर रहा था, साथ ही अनगिनत तोड़-मरोड़ रहा था
उसके भाग्य की नाव में छेद हो चुका था जो बस डूबने वाली थी

और कर्म की नाव चलाने में वो असमर्थ था क्यूंकि वो शिथिल जो हो चुका था वक़्त की पिछली चोटों से
शायद इसीलिए वो खिड़की पे खड़ा उस नए सूरज की आँख में आँख डालकर उससे ऊर्जा मांग रहा था

ताकि वो कर्म की नाव खींच सके उसे किनारे तक ला सके
वो लड़का खामोश खड़ा खिड़की से उस बिलकुल नए सूरज की ओर देख रहा था। ……………………

“ऋतेश “

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