"सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर"

सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर माँ ने दरवाजा खोला कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी हम दुबके पड़े थे रजाई की आगोश में भरी शीतलहर में, कोदई की माँ मील चलकर आई थी माँ रोज कहती, अम्मा इतनी ठण्ड में मत आया करो बूढ़े बदन में ठण्ड लग जाएगी, घर पे…

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"सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में"

सुबह तक रख ले ना आज चाँद को अपने आँचल में कल पहली किरण के साथ ही अलविदा कह दूंगा चला जाऊंगा चाँद को साथ लेकर कहीं बहुत दूर, तेरे दिन के उजाले से कल से बस इसके हिस्से में अमावस होगी, वादा करता हूँ देख ना कैसे तड़प रहा है तेरी पनाह पाने को,…

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"ऐसा नहीं है तुझे तुझसे छीन रहा हूँ मैं"

ऐसा नहीं है तुझे तुझसे छीन रहा हूँ मैं ऐ ज़िंदगी, तेरी ज़िंदगी में कुछ नए रंग भर रहा हूँ मैं फिसल गया था कभी ज़माने की अंधी दौड़ में जो तेरी उंगली थामकर आहिस्ता-आहिस्ता फिर से चल रहा हूँ मैं इक लौ जो बुझ गयी थी सीने में पिछली आँधियों में वो आग फिर…

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"पलकों पर ही रखा था"

पलकों पर ही रखा था उसे और उसके ख्वाब को आँखे खोली दोनों फिसल गए वो सदियों के लिए रूठ गया मुझसे मैं और मेरे ख्वाब टूटकर बिखर गए मेरे ही पहलू में “ऋतेश “

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"तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ"

तेरी मीठी रातों से इक रात चुराने आया हूँ तेरी नीली आँखों से कुछ ख्वाब चुराने आया हूँ ना दे इल्ज़ाम तू चोरी का, मैं चोर नहीं दीवाना हूँ इस रात की बस औकात मेरी, मैं नन्हा इक परवाना हूँ ले चलूँ तुझे तारों की छाँव, आ चल मैं लेने आया हूँ तेरी मीठी रातों…

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"मर्ज़ियाँ मोड़ दी तुमने तो राह बदल गई"

मर्ज़ियाँ मोड़ दी तुमने तो राह बदल गई अर्ज़ियाँ मानते तो हम मुसाफिर नहीं होते बस इक सच बोल के मैंने वो सिलसिला शुरू किया था तुम सौ झूठ न बोलते, तो हम तनहा नहीं होते जो वक़्त तुमने तमाम नफरतों में खर्च दिए, हमारा इश्क़ ज़िंदाबाद होता गर तुम थोड़े बहुत भी मेरे जैसे…

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"आज फिर जूते पहने है सुबह-सुबह"

आज फिर जूते पहने है सुबह-सुबह, आज फिर पूरे दिन नहीं उतरेंगे वक़्त रेत सा फिसलेगा, हम लहरों से लड़ेंगे नज़र साहिल से टकरायेगी, हम थक के भी ना थकेंगे आज फिर होंगे कई यादगार लम्हे आज फिर मिलेंगी कुछ खुशियाँ, कुछ सदमे कुछ से रफीकी बढ़ेगी, कुछ खामखा रक़ीब बनेंगे कुछ से जन्मों के…

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"आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है"

आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है काली बदलियाँ घिरी पड़ी हैं रातरानी के फूल खिल गए हैं मद्धम मद्धम बूंदे पड़ रही हैं और हवाएँ महक रही हैं मैं ऐसा हूँ के जैसा नहीं हूँ, मैं जैसा था, अब वैसा नहीं हूँ हर तरफ अँधेरा सा है, और मैं लाचार हूँ ज़िंदगी की कश्मकश…

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