आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है
काली बदलियाँ घिरी पड़ी हैं
रातरानी के फूल खिल गए हैं
मद्धम मद्धम बूंदे पड़ रही हैं
और हवाएँ महक रही हैं
मैं ऐसा हूँ के जैसा नहीं हूँ, मैं जैसा था, अब वैसा नहीं हूँ
हर तरफ अँधेरा सा है, और मैं लाचार हूँ
ज़िंदगी की कश्मकश से, हैरान हूँ, परेशान हूँ
आसमाँ आज तारों से नहीं भरा है
काली बदलियाँ घिरी पड़ी हैं……………..
“ऋतेश “