अपना-अपना सब करते हैं, सबका क्या है पता नहीं
इस झूठी धोखेबाज़ दुनियाँ में, अपना कौन है पता नहीं
पैर लगा आगे बढ़ जाओ, वक़्त यही अब मांग रहा
सफलता तमको तभी मिलेगी, हर व्यक्ति यही अब जान रहा
गैरों की खातिरदारी में, रिश्तों की परवाह नहीं
अपना-अपना सब करते हैं, सबका क्या है पता नहीं। ……………….
सच बोलोगे मारे जाओगे, अच्छाई को जगह नहीं
जल्द से जल्द बदल लो खुद को, ईमानदारी की खैर नहीं
लदे हुए हैं सभी नाव में, मांझी का कुछ पता नहीं
अपना-अपना सब करते हैं, सबका क्या है पता नहीं। ……………….
चले बदलने इस समाज को, जो इसका ही इक हिस्सा हैं
भ्रष्टता सबकी रग-रग में है, सबका इक जैसा किस्सा है
भाग रहे सब गिरते-पड़ते, मंज़िल का कुछ पता नहीं
अपना-अपना सब करते हैं, सबका क्या है पता नहीं
इस झूठी धोखेबाज़ दुनियाँ में, अपना कौन है पता नहीं |
“ऋतेश “