थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी
जब हम दूर हो जायेंगे, नदी के दो किनारो के जैसे
जो कभी नहीं मिलते
थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी
जब हम चुप हो जायेंगे, पत्थर की तरह
जो कभी बोलते नहीं
थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी
जब हम नज़रे चुरायेंगे एक दूजे से, अज़नबियों के जैसे
जो पहचानते तक नहीं
थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी और पड़ना भी चाहिए
क्यूंकि हम एक थे, एक हैं और एक ही रहेंगे
न मिलके भी हम इन पन्नो में मिलेंगे
और इंतज़ार करेंगे नियति का
जो कभी किनारो को मिलायेगी ||
“ऋतेश “
Shreya
July 24, 2014 at 10:59 pmVery nice! Keep up the good work n follow your DREAMS 😉