हवा चली, पत्ते हिले, कुछ टूट गए, कुछ लगे रहे
कुछ को कीड़ों ने खाया था, कुछ ताज़ा थे कुछ सड़े-गले
सबकी ख्वाहिश सब जुड़े रहे, पर मौत कहा वो टाल सके
किस पल को रुखसत होना है, ये राज़ कहा वो जान सकेकुछ के जाने पर कुछ रोये, कुछ से सब अनजान रहे
कुछ ने लड़कर खुद को खोया, कुछ सूखे थे कुछ हरे-भरे
हवा चली, पत्ते हिले, कुछ टूट गए, कुछ लगे रहे
कुछ को कीड़ों ने खाया था, कुछ ताज़ा थे कुछ सड़े-गले
वो टूट गए सब खत्म हो गया,ये बात सभी ना जान सके
उनको तो मरकर जीना था, शायद हम ना पहचान सके
कुछ जलकर के ईंधन बने, कुछ पर लोगों ने लेख लिखे
कुछ की किस्मत में सड़ना था, कुछ से परिंदों ने महल बुने
हवा चली, पत्ते हिले, कुछ टूट गए, कुछ लगे रहे
कुछ को कीड़ों ने खाया था, कुछ ताज़ा थे कुछ सड़े-गले
ये बात नहीं बस पत्तों की, हम सबकी यही कहानी है
पेड़ ज़िंदगी, हम पत्ते हैं, और वक़्त हवा बन जाती है
हम जिनपर लटके बैठे हैं, इक पेड़ की सब शाखाएं हैं
हम मिलकर रहें तो ज़िंदगी है, ये बात कहाँ सब मान सके
हवा चली, पत्ते हिले, कुछ टूट गए, कुछ लगे रहे
कुछ को कीड़ों ने खाया था, कुछ ताज़ा थे कुछ सड़े-गले ।
“ऋतेश “