“नज़्म जो लिखे थे तुम पर”
नज़्म जो लिखे थे तुम पर कई साल पहले सर्दियों में जाने कहाँ छिटक कर गिर गए हैं वो मेरी डायरी से मैंने बहुत ढूँढा पर कहीं ना मिला अब तक कुछ भी हाँ मगर धुंधला सा याद है थोड़ा बहुत जोड़ कर देखूंगा हर्फ़ दर हर्फ़ शायद कहीं वो अधूरी नज़्म मुकम्मल हो जाये…