सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर
माँ ने दरवाजा खोला
कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी
हम दुबके पड़े थे रजाई की आगोश में
भरी शीतलहर में, कोदई की माँ मील चलकर आई थी
माँ रोज कहती, अम्मा इतनी ठण्ड में मत आया करो
बूढ़े बदन में ठण्ड लग जाएगी, घर पे ही आराम करो
उसके भूखे पेट का कोई सहारा नहीं था
इसलिए माँ की बात अनसुनी करके, कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी
कोदई को उसकी परवाह न थी
पीने से उसको फुर्सत कहाँ थी
होश में होता तो कभी-कभार रिक्शा चलाता था
साँझ ढले कहीं ना कहीं से पिट के आता था
शायद कल कोदई बीमार था, मैंने सुबह कहते हुए सुना
उसकी दवाई का परचा लेकर , कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी
सुबह के ६ बजे दरवाजे पे दस्तक पर
माँ ने दरवाजा खोला
कोदई की माँ बर्तन धोने आई थी…………………………………………..
“ऋतेश”


 
                         
                         
                         
                         
                         
                         
                         
                         
				