अंतर्मन को हिलाकर रख देने वाली एक और घटना हुई है
फिर से हैवानियत ने इंसानियत की अस्मत लूट ली है
इंडिया गेट पर एक और कैंडल मार्च निकल रहा है
हाथो में मोमबत्ती-पोस्टर लिए लोग निकल पड़े हैं अपने घरों से
बहुतों की सेल्फीज़ भी दिख रही है फेसबुक प्रोफाइल पे
लगता है देश का मिज़ाज़ गुस्से में है आज फिर से
कुछ दुकाने, बसें जला दी है भीड़ ने गुस्से में आकर विरोध जताने के लिए
सुबह के अख़बारों में विज्ञापन के साथ सरकार को कोसती हुई एक और खबर छुपी है
न्यूज़ चैनल्स को ब्रेकिंग न्यूज़ के नाम पे टी आर पी बटोरने के लिए एक और मसाला मिल गया है
नेताओ के पास एक दूसरे पर कीचड़ उछालने का नया बहाना मिल गया है
कभी सोचा है आपने इक्कीसवी सदी के इस भारत में ये क्या हो रहा है और क्यूँ हो रहा है
आप कहते हैं के सरकार सो रही है, कानून अँधा है, यहां की अदालतें बस तारीख बांटती हैं
पर आप तो जग रहे हो ना
फिर क्यूँ खुली आँख से अपने आस-पास ये सब होते हुए देख पाते हो
कभी दूर खड़े रहकर ताली बजाते हो, कभी खुद भी शामिल हो जाते हो
कभी तो झांक कर देखो अपने अंतस में, क्या तुम्हे अपने घरों में औरतें नहीं दिखतीं
तुम्हारी माँ, बीवी, बहन, बेटियां नहीं हैं जिनकी सुरक्षा तुम्हारी ज़िम्मेदारी है
अगर आज भी हाथ पर हाथ रखके चुपचाप बर्दाश्त करना है या महज़ इसे तमाशा समझना है तो करो और समझो
कल तुम्हारे अपनों के साथ खुदा-ना-खास्ता ऐसा हो जाये
फिर निकाल लेना तुम भी एक कैंडल मार्च
मीडिया खुद पहुँच जाएगी तुम्हारे दर्द का पोस्टमार्टम कर उसकी पर्चियां दुनियाँ भर में उड़ाने
या लटक जाना पंखे से या खा लेना ज़हर ख़ुदकुशी के लिए गर बर्दाश्त ना हो तुमसे
कोई भी सरकार या क़ानून समाज नहीं बनाती है
वो बस समाज की जैसे-तैसे व्यवस्था चलाती है
समाज बनता है हमसे, हम बनाते हैं उसे
अगर कुछ बदलना है तो खुद को बदलो पहले
सिखाना है तो अपने बेटों को सिखाओ
बताओ उन्हें कड़वे लफ़्ज़ों में के उनके घर में भी माँ है, बहन है, औरतें हैं जिन पर भी हर पल
हैवानों की नज़रें गड़ी रहतीं हैं, मौका तलाशती हैं
बताओ उन्हें के कैसे तुम्हे रात को सुकून से नींद नहीं आती है किसी अनहोनी के डर से
बताओ उन्हें के जब तुम घर के बाहर होते हो तो ज़ेहन में तुम्हारे एक खौफ बैठा होता है
बताओ उन्हें के जब उनकी प्यारी छोटी गुड़िया जैसी बहन घर से स्कूल को निकलती है
तबसे उसके लौटकर सही-सलामत घर पहुंचने तक, तुम्हारा ब्लड-प्रेशर बढ़ा हुआ होता है
बताओ उन्हें ये समझाओ उन्हें
सही और गलत का फर्क, हैवानियत और इंसानियत का फर्क समझाओ उन्हें
रोटी, कपड़ा, मकान देकर ये मत भूलो की सही संस्कार भी तुम्हे ही देना है उन्हें
अपराध होगा, क़ानून किसी को पकड़ेगा, कोई कानून को खरीदकर जूतों के नीचे दबा लेगा
किसी को फांसी हो जाएगी कोई जेल में सड़ेगा
पर ये नहीं रुकेगा, भले ही तुम कितने मार्च निकाल लो, हड़ताल कर लो, बसें-दुकाने जला दो
ये सब नेताओं अख़बारों और टीवी को एक मसाला दे जाएगी जिसे वो तुम्हे ही
जाति-धर्म, आस्था, व्यवस्था और राजनीति में मिलाकर तुम्हारा और समाज का शोषण करेंगी और करती रहेंगी
ये सब तब तक नहीं बदलेगा या रुकेगा जब तक समाज और समाज में शामिल हम खुद को और अपनों की सोच नहीं बदल लेते
सरकारें आएँगी-जाएँगी, कानून बनेंगे अपराध रोकने के लिए और वापस एक और कानून बनेगा उसी कानून का तोड़ निकालने के लिए
दूसरों को छोड़िये, आइये हम खुद को बदलते हैं आज अपने बेटों से बात करते हैं आज
बाहर का कचरा छोड़िये, पहले अपना मन और घर साफ़ करते हैं आज
जय हिन्द !
जय भारत !
“ऋतेश“