"हैं ढेरों कश्तियाँ सामने मेरे" Posted on December 15, 2015 by RItesh Kumar Mishra हैं ढेरों कश्तियाँ सामने मेरे समझ नहीं आता किसे साथ लेकर दरिया पार हो जाऊँ या डूब कर दरिया का ही हो जाऊं “ऋतेश””