“नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं”
नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं तुमसे बेहतर ही था तुमसे बेहतर ही हूँ वक़्त की टिकटिक पर कब टिका हूँ मैं आवारा ही था आवारा ही हूँ आवारा ही था आवारा ही हूँ! “ऋतेश“
नहीं शौक तुझसे आज़माइश करूँ मैं तुमसे बेहतर ही था तुमसे बेहतर ही हूँ वक़्त की टिकटिक पर कब टिका हूँ मैं आवारा ही था आवारा ही हूँ आवारा ही था आवारा ही हूँ! “ऋतेश“
शक्लो सूरत और किरदार सब बदल लिए तूने वक़्त ने तेरे चेहरे का नक़ाब जो हटाया तू कुछ और था कुछ और ही नज़र आया “ऋतेश”
डरता हूँ तेरी मुस्कराहट कहीं गुम ना हो जाये एक पूरा मौसम लगता है उसे वापस तुम्हारे होंठो तक ला पाने में मुझको “ऋतेश“
हर बात में एक कहानी छुपी है जिसके पीछे किरदार छिपे है अलग-अलग नक़ाब लगाए हुए, छुपाते है अपनी असल शक़्ल को इस क़दर जो कभी सामना हो खुद का आईने से तो खुद की आँख भी धोखा खा जाये और नक़ाब ओढ़े हुए किरदार को खुद भी ना पहचान पाए यही फलसफा है दुनिया…
वो रौबदार मूंछो वाला आदमी बड़ा मायूस है बेटी की विदाई ने उसकी सूखी आँखों को डबा-डब कर दिया है आखिर बड़े ही नाज़ों से पाला था उसे अब दूसरे की उंगली थमा दी है उम्र भर के लिए बेटी कितनी बड़ी हो गई है अब जाके उसे एहसास हुआ नम आँखों से एक बाप…