"कहाँ गयीं वो कहानियाँ भरी रातें "

कहाँ गयीं वो कहानियाँ भरी रातें घर के बुजुर्गों की सहूलियत भरी बातें चूल्हे पर सिकीं वो रोटियां कहाँ छिपाई है माँ ने मिठाई, रास्ता बताती वो चीटींया कहाँ गए वो खेलने कूदने के दिन कहाँ गयी वो मस्तियाँ बहते वक़्त में छूट गए वो हंसी किनारे कट जाएगी ज़िंदगी उन यादों के सहारे अब…

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“थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी”

थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी जब हम दूर हो जायेंगे, नदी के दो किनारो के जैसे जो कभी नहीं मिलते थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी जब हम चुप हो जायेंगे, पत्थर की तरह जो कभी बोलते नहीं थोड़ा सा फर्क पड़ेगा, तुम्हे भी और मुझे भी जब…

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