“आजादी सबको है पर”

Azad I sabko hai, freedom

आजादी सबको है पर हर आज़ादी के कुछ कायदे और कानून है
वो भी इसलिए क्यूँकि कल अगर आजादी के साथ जुड़ी हुई सारी सीमायें हटा दी जाये
तो इंसान ईश्वर को चुनौती देकर खुद को ही भगवान मान बैठेगा
और फिर एक अनसुनी और अनहोनी जंग छिड़ेगी खुद को इकलौता ईश्वर बताने की
आज हम अपने मौलिक अधिकारों की आड़ में खुद को मिली हुई आजादी के दायरे तोड़ने की कोशिश में लगे हुए हैं
पर याद रखिये के संविधान निर्माताओं ने किसी भी मौलिक अधिकार को निरंकुश नहीं बनाया है

अपने विचारों को बिना किसी रोक-टोक के व्यक्त करने की स्वतंत्रता अभिव्यक्ति की आजादी कहलाती है
पर हर आजादी किसी ना किसी दायरे में बंधी हुई होती है
कही पढ़ा था के आपकी स्वतंत्रता सामने वाले की नाक तक ही सीमित होती है
अभिव्यक्ति की आजादी का मतलब किसी भी सरकार, व्यक्ति-विचार, व्यवहार, किताब या जाति-धर्म की रचनात्मक आलोचना हो सकती है
पर इस आजादी का मतलब ये नहीं है के आप आलोचना और अपमान के अंतर को भूल जाये
अभिव्यक्ति की आजादी हमारे मौलिक अधिकारों का एक अहम हिस्सा है
पर ये हमे अपने ही मुल्क को, किसी धर्म-जाति या व्यक्ति-विशेष को अपमानित करने की आजादी नहीं देता है

आज किसी को अभिव्यक्ति की आज़ादी के नाम पर देश को गाली देने की आज़ादी चाहिए
किसी को आरक्षण से आज़ादी चाहिए, किसी को आरक्षण की आज़ादी चाहिए
किसी को गौ-हत्या के नाम पर इंसानो की हत्या कर देने की आज़ादी चाहिए
किसी को सरकार से आज़ादी चाहिए किसी को परिवार से आज़ादी चाहिए
किसी को कश्मीर की आज़ादी चाहिए
किसी को मंदिर किसी को मस्जिद बनाने की आज़ादी चाहिए
किसी को भ्रष्टाचार से तो किसी को गरीबी से आज़ादी चाहिए
किसी को महिलाओ पर हो रहे अत्याचार से आज़ादी चाहिए
कई तो ऐसे भी है जिन्हे खुद के कर्तव्यों से ही आज़ादी चाहिए

तमाम तरह की आज़ादी के नाम पर हम निरंकुश तो होना चाहते है पर कोई भी व्यक्तिगत बुराइयों से आज़ाद होना नहीं चाहता है

किसी को भी खुद की मानसिकता सही कर लेने की परवाह नहीं है ना ही कोई खुद को बदलने को तैयार है पर सबको देश में बदलाव चाहिए

खुद का घर साफ़ हो या ना हो, सड़के, गली- मोहल्ले सबको साफ़ चाहिए
वोट हम अपराधी को ही देंगे, पर सरकार ईमानदार होनी चाहिए

गाली हम देश को देंगे पर पासपोर्ट, आधार, राशन, वोटर कार्ड के साथ-साथ सारे मौलिक अधिकार हमे इसी देश के चाहिए

एक बात हमेशा याद रखिये के रंग चाहे जितने भी गहरे हो पर अँधेरे में सब कुछ काला ही दिखता है
इसलिए पहले खुद को उजाले में लेकर आइये फिर रंगो को अपने हिसाब से ज़िंदगी की कैनवास में उतारिये तभी आपको आपके आस-पास काला कम और बाकी रंग ज्यादा दिखाई देंगे

मेरे हिसाब से संतुष्टि और पूर्णता है आज़ादी
पिंजरे की कैद से किसी परिंदे का बाहर निकलकर खुले आसमान में पर फैलाना है आज़ादी
अपने संविधान,अपने बनाये हुए एकमत कानून के दायरे में रहकर जीवन बिताना है आज़ादी
आज़ादी सिर्फ एक शब्द नहीं है एक भाव है जो एक दायरे के साथ बंधकर आता है

आप आज़ाद है ये कहकर किसी के ऊपर मुँह का पान नहीं थूक सकते है
आप शौक से हवा में हाथ-पैर लहरा सकते है पर किसी को मुक्का या लात नहीं मार सकते है
ट्रैफिक के सारे सिगनल कही भी कभी भी तोड़ नहीं सकते है
ट्रैन या बसों में बिना टिकट घुस नहीं सकते है
जिस देश का खाते है उस देश को जी भर के गालिया नहीं दे सकते है
उसके टुकड़े-टुकड़े करने की बात नहीं कर सकते है
और यही वो दायरे है जिनके साथ आपकी आज़ादी बंधी हुई है जो आपका सभ्य समाज बनाता है

फुर्सत मिले कभी तो पूछना खुद से अपनी आज़ादी और उसकी सीमाओं के बारे में
अतीत में झांककर देखना और अपने वर्तमान से आँख मिलाकर बोल देना
अगर आपको अपनी आज़ादी में कही भी कोई कमी लगती है

“ऋतेश“

One thought on ““आजादी सबको है पर”

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *