कैंटीन की वो तेरह सीढ़ियां बड़ी मायूस हैं, ए दोस्त
खामोश रहकर भी जाने कितने सवाल कर जाती हैं
उन सीढ़ियों के साथ मुझे भी यकीन है,
वो लम्हे तुम भी भुला नहीं पाये होगे |
ये वो तेरह सीढ़ियां हैं जहाँ पर कुछ चेहरों की मुस्कराहट एक पोटली में बंधी है
और सब उसे भूल आये हैं वही किसी एक सीढ़ी पर
तभी तो सब किस्तों में मुस्कुरा पाते हैं
अपने घर पर, ऑफिस में या जहाँ कही भी ठहरता है कारवां
एक कसक सी उठती है, और पलकें भीग जाती है
पर उन यादों की महक, होंठो पर अधखिली मुस्कराहट बिखेर जाती हैं
कैंटीन की वो तेरह सीढ़ियां बड़ी मायूस हैं ए दोस्त
खामोश रहकर भी जाने कितने सवाल कर जाती हैं
उन सीढ़ियों के साथ मुझे भी यकीन है
वो लम्हे तुम भी भुला नहीं भुला पाये होगे ॥
“ऋतेश “