दिल की दराज़ से हर एक याद निकाली
आहिस्ते से यादों पे पड़ी धूल झाड़ी
हर याद को बड़े करीने से संभाला
खट्टी- मीठी यादों को अलग- अलग झोले में डाला
सोचा बेंच दूंगा इन्हे कोई अच्छा सा खरीददार देखकर
और चल पड़ा मैं सपनो के बाजार में, कुछ यादों का सौदा करने
शाम से चलते-चलते यादों का भरी झोला पीठ पे उठाये
देर रात पहुंचा मैं, सपनो के बाजार में
बड़ा ही अटपटा सा था वो सपनो का बाजार
मेरे जैसे जाने-पहचाने, कुछ अनजाने ऐसे बहुत थे
जो यादों की दुकान लगाये कर रहे थे इंतज़ार, एक अदद खरीददार
सब मायूस थे और मैं भ्रमित, हमेशा की तरह
जाँच-परखकर बड़ी देर बाद इक छोटे से पेड़ के नीचे
बैठ गया मै, यादों की दुकान लगाने
मेरे बगल में कुछ दूरी पर ही बैठा था एक बूढा आदमी
मैंने पूछा बाबा तुम क्या बेचने आये हो
वो बोला मै वो याद बेचने आया हूँ, जब मैं बाप बना
ऊँगली पकड़ाकर अपने बेटे को दुनिया दिखाई
उसकी हर जिद पूरी कराई, उसी बेटे ने कल रात भरी सर्द रात में
मेरी चारपाई घर से बाहर बरामदे में निकाल दी
ये कहकर के आप बेवजह कराहते हो
मेरी घरवाली ठीक से सो नहीं पाती
अम्माँ तो खांस- खांस के कबकी चल बसी, जाने आप कब जाओगे
बूढ़ा बड़बड़ाया, वो यादें ही मुझे रुलाती हैं
मैं बेंच देना चाहता हूँ उसकी हर एक याद
पच्चीस साल पहले की याद, पिछली रात की याद
बूढ़े की बातों में एक पहर निकल गया, मैं झल्लाया
मैंने भी धीरे- धीरे अच्छी-बुरी यादों को झोले से बाहर निकाला
और सजाकर रख दिए, कुछ पेड़ की टहनियों पे लटकाये
कुछ पेड़ से टिकाकर रख दिए, और कूदकर सामने से एक अच्छे खरीददार की तरह
जांचने लगा दुकान की सजावट और सामान को
थोड़ा संतुष्ट हुआ, और बैठ गया अखबार के एक छोटे टुकड़े पर तनकर
एक अच्छे दुकानदार की तरह
थोड़ी देर बाद कुछ खरीददार आये, तोल-मोल किया, पर किसी से सौदा नहीं बना
चिड़ियों की चहचहाट ने बता दिया के बाज़ार कुछ देर ही लगेगा
मैं बाट जोहता रहा पर पूरी रात एक भी खरीददार नहीं मिला
बोझल मन से मैंने दुकान समेटी, यादों को वापस झोले में डाला
मेरे पास बैठा वो बूढ़ा आदमी नीला पड़ चुका था
उसने कराहना भी बंद कर दिया था
थका-हारा घर वापस लौटा, यादों को वापस दिल की दराज़ में रखने लगा
फिर दिल ने कहा
“तेरी यादों का तुझसे मुकम्मल कोई और खरीददार नहीं
इक एहसान कर, ले जा इन्हे मुझसे औने-पौने दाम पर”
“ऋतेश “
Roshita
September 11, 2014 at 12:01 amAmazing sir !!